घुटनों के दर्द को मामूली दर्द समझकर युवा नजरअंदाज कर देते हैं तो वहीं बुजुर्ग इसे उम्र का तकाजा मानकर शांत बैठ जाते हैं. घुटनों का यह दर्द ओस्टियोआर्थराइटिस यानी गठिया भी हो सकता है और आंकड़ों के अनुसार अगर घुटने के दर्द के मामलों की यही स्थिति रही तो साल 2025 तक भारत में छह करोड़ से भी ज्यादा लोगों के इस बीमारी से प्रभावित होने का पूवार्नुमान है. आर्थराइटिस की समस्या तब शुरू होती है, जब घुटनों के जोड़ में जैली जैसे पदार्थ कार्टिलेज में घिसाव होने लगता है. इससे घुटने की हड्डियां आपस में रगड़ने लगती है और घुटने में सूजन, अकड़न और दर्द होने लगता है. हालांकि यह बीमारी उम्र बढ़ने और अनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है लेकिन कम उम्र के लोगों में आर्थराइटिस के मामले जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं. इसका कारण लोगों का कसरत और सैर न करना, संतुलित आहार न लेना, सारा दिन बैठे रहना और मोटापा है. आंकड़ों के अनुसार अगर आर्थराइटिस के मामलों की यही स्थिति रही तो साल 2025 तक भारत में छह करोड़ से भी ज्यादा लोगों के इस बीमारी से प्रभावित होने का पूवार्नुमान है. हरियाणा के फरीदाबाद में क्यूआरजी हेल्थ सिटी ...
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा हाल ही में जारी की गई सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के 14 शहर शामिल थे, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंका देने वाली बात यह है कि भारत का प्रदूषण स्तर संगठन द्वारा निर्धारित भारत वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रहा है जिसके कारण देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र कम से कम एक से दो साल और दिल्ली में छह साल तक घट रही है। लंग केयर फॉउंडेशन के अध्यक्ष व प्रोफेसर डॉ. अरविंद कुमार ने आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा, कुछ दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत का प्रदूषण स्तर संगठन द्वारा निर्धारित भारत वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रहा, जिसके कारण देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र कम से कम एक से दो साल और दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर में छह साल तक घट रही है। वहीं अगर हम डब्लूएचओ के मानकों को पूरा करते हैं तो देश में प्रत्येक व्यक्ति की उम्र चार से पांच साल तक बढ़ सकती है। डॉ. अरविंद कुमार ने कहा, दरअसल इसके पीछे वजह है देश और दिल्ली का पीएम2.5 स्तर। हाल ही में अमेरिका के बर्कले अर्थ संग...
कम तीव्रता की अल्ट्रासाउंड तरंगों से डिमेंशिया या अल्जाइमर के मरीजों के संज्ञानात्मक अक्षमता में सुधार हो सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कम तीव्रता वाले स्पंदित अल्ट्रासाउंड (एलआईपीयूएस) का चूहों के दिमाग पर इस्तेमाल करने से बिना दुष्प्रभाव के रक्त वाहिका निर्माण व तंत्रिका कोशिकाओं को पुनर्निर्माण में सुधार दिखाई दिया. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह का उपचार मानव के लिए लाभदायी हो सकती है. जापान के तोहोकू विश्वविद्यालय के हिरोआकी शिमोकावा ने कहा, "एलआईपीयूएस थेरेपी बिना घाव वाली फिजियोथेरेपी है. इसका इस्तेमाल ज्यादा जोखिम वाले बुजुर्ग मरीजों में बिना सर्जरी या एनेस्थेसिया के किया जा सकता है और इसका बार-बार इस्तेमाल हो सकता है."
Comments
Post a Comment