हृदय रोग के 50 तो डायबिटीज के 150 फीसदी बढ़ें मरीज, जानें कारण
एक बयान में बताया गया कि वैश्विक बीमारियों का बोझ अध्ययन के तहत यह रिपोर्ट 1990 के बाद उपलब्ध बीमारियों के दर्ज आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है। इसे तैयार करने में विशेषज्ञों के अलावा देश भर के 100 से अधिक संस्थानों ने भी योगदान दिया है, जिसे द लेंसेट ग्लोबल हेल्थ, द लेंसेट पब्लिक हेल्थ, और द लेंसेट ऑकोलॉजी में पांच शोध पत्रों की सीरीज में प्रकाशित किया गया है। इसके साथ ही इस पर द लेंसेट में एक कमेंट्री भी प्रकाशित की गई है। आईसीएमआर के महानिदेशक और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य शोध विभाग के सचिव प्रोफेसर बलराम भार्गव ने कहा, सबसे चिंता की बात यह है कि देश के पिछड़े राज्यों में सबसे ज्यादा हृदय रोग और मधुमेह के मरीज हैं। साथ ही बच्चों को होने वाली बीमारियों से भी सबसे ज्यादा पीड़ित देश के पिछड़े राज्य ही हैं। इसलिए इन राज्यों में बीमारियों की रोकथाम के लिए अबिलंब कदम उठाए जाने की सख्त जरूरत है।
उन्होंने कहा, देश में 1990 के बाद से कैंसर मरीजों की संख्या दोगुनी हो चुकी है, जबकि राज्यों में कैंसर के प्रकार के मामलों की संख्या अलग-अलग पाई गई है। वहीं, इस शोध में यह भी पाया गया है कि दुनिया में होनेवाली कुल आत्महत्याओं में भारत में बहुत अधिक आत्महत्याएं होती है, खासतौर महिलाओं की आत्महत्या ज्यादा होती है, जिसके आंकड़ों में विभिन्न राज्यों में दस गुणा तक का अंतर है। इसलिए इसके कारणों की पहचान कर कदम उठाने की जरूरत है। नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर विनोद पॉल ने कहा, इस शोध के निष्कर्ष राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन के तहत हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित आयुष्मान भारत की जरूरत पर बल देता है, जिसकी योजना ठीक समय पर बनाई गई है। हम इन निष्कर्षो का उपयोग करके राज्यों के साथ मिलकर हरेक राज्य में उसकी जरूरत के हिसाब से प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत बनाने के लिए करेंगे।
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